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नवगीत
,*नवगीत कोई ऊपर से टूटा आकाश-कुसुम नहीं है, वह परंपरा से ही उपजी नवता है । नवगीत एक बिंबप्रधान काव्य-रूप है । उसमें सहजता तो अभिप्रेय है लेकिन सपाटबयानी नहीं । सपाट सिर्फ़ गद्य हो सकता है कविता नहीं । सहज होने और सपाट होने में अंतर है । कविता की एक विशेषता यह भी कही जाती है कि वह जितना व्यक्त करती है उतना ही अनकहा भी छोड़ देती है । दरअसल यह अनकहा ही तो कविता है ।
*नवगीत और सहजगीत में सिर्फ़ शब्द का अंतर है । नवगीत भी सहजगीत हो सकता है और सहजगीत नवगीत । एक महत्वपूर्ण बात है कि अपने आरंभिक काल में नवगीत ने लोकजीवन से नई ऊर्जा ग्रहण की लेकिन कुछ लोगों ने उसे नवगीत का प्रतिमान मानकर इतने आंचलिक प्रयोग किए विशेषतः भाषा के स्तर पर कि वे सम्प्रेषणीय नहीं रह गए । इसी तरह कुछ भाषाविदों ने तत्सम शब्दाबली के प्रति इतनी गहरी रुचि दिखलाई कि उनकी रचनाओं को समझने के लिए कभी-कभी पढे-लिखे लोगों को भी शब्दकोषों का सहारा लेना पड़ा । दरअसल इनसे मुक्त गीत ही नवगीत है, गीत नवांतर है, जनवादी गीत है जिसे मैं सहज गीत मानता हूँ ।
*नवगीतों में कथ्य और बिंबों में नयापन तथा भाषा में एक अलग तरह की मिठास एक साथ गुंथी हुई होती है, सौजन्य से : [[योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’]] {{KKCatNavgeetkaar}}