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{{KKRachna
|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
}}
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<poem>
वो जो दिखता है तयशुदा जैसा
उस में ही ढूँढें कुछ नया जैसा
भीड़ में भी अलग दिखेगा वो
उस का चेहरा है चंद्रमा जैसा
कुछ नया रँग उभर ही आता है
चाहूँ कितना भी तयशुदा जैसा
क्यों नहीं खोलते दरीचों को
हमको लगता है दम-घुटा जैसा
जुट गया होता काश जीते-जी
वक़्तेरुखसत हुजूम था जैसा
लिख मुहब्बत के बोल कागज़ पर
शेर बन जायेगा दुआ जैसा
दम निकलने पे भी न छोड़े साथ
कोई हमदम नहीं ख़ुदा जैसा
हर समय हर जगह वो है मौजूद
उस का किरदार है हवा जैसा
इस के बिन सारे रिश्ते बेमानी
कोई ज़ज़्बा नहीं वफा जैसा
</poem>
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|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी
}}
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वो जो दिखता है तयशुदा जैसा
उस में ही ढूँढें कुछ नया जैसा
भीड़ में भी अलग दिखेगा वो
उस का चेहरा है चंद्रमा जैसा
कुछ नया रँग उभर ही आता है
चाहूँ कितना भी तयशुदा जैसा
क्यों नहीं खोलते दरीचों को
हमको लगता है दम-घुटा जैसा
जुट गया होता काश जीते-जी
वक़्तेरुखसत हुजूम था जैसा
लिख मुहब्बत के बोल कागज़ पर
शेर बन जायेगा दुआ जैसा
दम निकलने पे भी न छोड़े साथ
कोई हमदम नहीं ख़ुदा जैसा
हर समय हर जगह वो है मौजूद
उस का किरदार है हवा जैसा
इस के बिन सारे रिश्ते बेमानी
कोई ज़ज़्बा नहीं वफा जैसा
</poem>