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18:42, 31 मार्च 2013
jhjhjhjhjग़ज़ल क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मालूम है क्याकितने तूफ़ान हैं भीतर तुम्हें मालूम है क्या उससे मिलनाकी तमन्ना है अगर मिल जाएकौन लिखता है मुक़द्दर तुम्हें मालूम है क्या दर्द कितना भी दो,आँसू नहीं आने वालेदिल मेरा हो गया पत्थर तुम्हें मालूम है क्या एक जुमला वो जो कल तुम कहा था उसनेख़ून से रँग दिए ख़न्जर तुम्हें मालूम है क्या डूब जाता है उन आँखों में उतरने वालाउसकी आँखें हैं समंदर तुम्हें मालूम है क्या