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क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मा’लूम है क्या / गोविन्द गुलशन
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क्यूँ है ख़ामोश समंदर तुम्हें मालूम है क्या
कितने तूफ़ान हैं भीतर तुम्हें मालूम है क्या
उससे मिलने की तमन्ना है अगर मिल जाए
कौन लिखता है मुक़द्दर तुम्हें मालूम है क्या
दर्द कितना भी दो,आँसू नहीं आने वाले
दिल मेरा हो गया पत्थर तुम्हें मालूम है क्या
एक जुमला वो जो कल तुम कहा था उसने
ख़ून से रँग दिए ख़न्जर तुम्हें मालूम है क्या
डूब जाता है उन आँखों में उतरने वाला
उसकी आँखें हैं समंदर तुम्हें मालूम है क्या