भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जतय अछल दुइ बिर्छ अकाय।।
जमला अर्जुन कनला-नाथ।
जुगुति उपारल छुइल न हाथ।ंहाथ।
खसल महातरू हँसल मुरारि।
भेल अघात जगत परचारि।।