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शिशु / मनबोध

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कतोएक दिवस जखन बिति गेल।
हरि पुनु हथगर गोड़गर भेल।
से कोन ठाम जतए नहि जाथि।
कए बेरि अँगनहुँसँ बहराथि।।
द्वार उपरसँ धरि धरि आनि।
हरखथि हँसथि जसोमति रानि।।
कए बेरि आगि हाथसँ छीनु।
कए बेरि चून दही बदि खाथि।।
कौशल चलथि मारिकहुँ चाल।
जसोमतिकाँ भेल जिवक जंजाल।।
कहलन्हि सिखबह हमरहि ताहि।
टाँग तोरिअ तँ केओ हम नाहि।।
मानिअ नहि एत एत बरजीअ।
यहीं हमर सभ केओ भेल छीअ।।
ई कहि बन्हलन्हि उखरि लगाए।
कहलन्हि पुत रिंगि जाउ तँ पराए।।
भेलिह निसंक समय हरि पाओल।
भरि भरि पाँज उखरि ओंघराओल।।
गुड़कल गुड़कल भिडुकल जाए।
जतय अछल दुइ बिर्छ अकाय।।
जमला अर्जुन कनला-नाथ।
जुगुति उपारल छुइल न हाथ।
खसल महातरू हँसल मुरारि।
भेल अघात जगत परचारि।।
आँगन सन देखि नयन नोराएल।
जसोमतिकाँ हिअ हाथ हराएल।।
की फल भेल मोहि एतेक अगोरि।
ने हरि ऊखरि नहि ओ डोरि।।
कनइत जसोमति पहुँचलि जाए।
नेरू हेरएने जेहने गाए।
तरूक सबद सुनि दौड़ल नन्द।
तेजि देल गाए परओ बरू बन्द।।
की तरू खसल बसात न झाँट
आज होइत मोर बारह बाट।।
जसोमति फोए हरि हृदय लगाओल।
हरि दामोदर पदवी पाओल।।
अंचल झाँपि भवन तह गेलि।
नयन बरसि जलधर तह भेलि।।
आनन चुम्बि पयोधर धएल।
सबहुँ सखि मिलि मंगल कएल।।
भन मनबोध हम अपन गेआन।
कहलन्हि बाल गोपाल धेयान।।