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[[Category:कुण्डलियाँ]]
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुन के गुनके ॥