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{{KKRachna
|रचनाकार=चैनसिंह शेखावत
|संग्रह=
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
{{KKCatKavita}}
<poem>बिरखा में नीं गळ्या होवैला
तावड़ै नीं पिघळ्या होवैला
थंारै मगरां ही मांडी
होठां री सैनाणी म्हारी।
हां, आज ई उळझै
म्हारै कमीज रै बटण मांय
थांरो एक लांबो बाळ
आज ई ब्याळ-बगत
यादां रा जुगनू
नै’र रै पार तांई
पळकता दीसै।
एक हेत
अर एक विस्वास
हर्यो राखै झिरक
जिंदगाणी नैं
आज ई।</poem>
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[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
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<poem>बिरखा में नीं गळ्या होवैला
तावड़ै नीं पिघळ्या होवैला
थंारै मगरां ही मांडी
होठां री सैनाणी म्हारी।
हां, आज ई उळझै
म्हारै कमीज रै बटण मांय
थांरो एक लांबो बाळ
आज ई ब्याळ-बगत
यादां रा जुगनू
नै’र रै पार तांई
पळकता दीसै।
एक हेत
अर एक विस्वास
हर्यो राखै झिरक
जिंदगाणी नैं
आज ई।</poem>