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सुवांज / चैनसिंह शेखावत

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<poem>म्हैं धरती रो गीत सुण्यो
पछै थांरी प्रेम-कविता
विकल्प री चरचा नीं है
चानणै खातर स्यात
दोनूं ई चाहीजै।

थे रूंख नैं पंपोळ्यो
पछै होठां मांड्यो चुंबन
बात होवै
अर जे नीं होवै
मौसम री पैलपोत
किणी एक खातर नीं है।
एक सांतरो सो सुवांज है
म्हैं अर थे मिल’र
मिनखणै खातर
इण सूं बत्तो
कीं नीं कर सकां।</poem>
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