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उणियारो / शिवदान सिंह जोलावास

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<poem>धरती रा इण खूणै सूं
उण खूणै तांई
जठै सूरज री सब सूं पैली निजर पड़ै
या सब सूं लारै आथमै
मिनख री जरूरत, मुस्किल एक है।

वो यूं ही मरै-जीवै
जियां म्हैं।

समंदर रै इण पार सूं उण पार
मिनख अदीठ सूं यूं ही डरै,
जियां म्हैं
रोटी अर क्रांति री लड़ाई जबरन जुध रै खिलाफ
वै यूं ही लड़ै जियां म्हैं
अठै सूं उठै तांई
हर मां री सोच, टाबर री हंसी,
घर सुपनो एक ही है
आंसू रो खार, हंसी रो ठसको,
मुळक आखै मुलक री एक ई है।
राजी होय’र वो यूं ई गीत गावै, जियां म्हैं।</poem>
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