भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
351 bytes removed,
14:35, 17 नवम्बर 2007
}}
जाने किस जीवन की सुधि ले<br>लहराती आती मधु-बयार!<br>लहराती आती मधु-बयारशून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी!<br><br>
रंजित कर दे यह शिथिल चरण ले नव अशोक का अरुण रागअर्चना हों शूल भोले,<br>मेरे मण्डन को आज मधुर ला रजनीगन्धा का परागक्षार दृग-जल अर्घ्य हो ले,<br><br>
यूथी की मीलित कलियों सेआज करुणा-स्नात उजला<br>अलि दे मेरी कवरी सँवारदु:ख हो मेरा पुजारी!<br><br>
पाटल के सुरभित रंगों से रंग दे हिम सा उज्जवल दुकूल;नूपुरों का मूक छूना,<br>गुथ सरद कर दे रशना विश्व सूना,<br>यह अगम आकाश उतरे<br>कम्पनी का हो भिखारी!<br>लोल तारक भी अचंचल,<br>चल न मेरी एक कुन्तल,<br>अचल रोमों में अलि-गुंजन से पूरित झरते वकुल-फूल;समाई<br>मुग्ध हो गति आज सारी!<br><br>
रजनी से अंजन माँग सजनिराग मद की दूर लाली,<br>दे मेरे अलसित नयन सार!<br>साध भी इसमें न पाली,<br> तारक-लोचन से सींच-सींच नभ करता रज को विरज आज;<br>बरसाता पथ शून्य चितवन में हरसिंगार केशर से चर्चित सुमन-लाज;<br><br> कण्टकित रसालों पर उठता-<br>है पागल पिक मुझको पुकार!बसेगी<br>लहराती आती मधु-बयारमूक हो गाथा तुम्हारी!<br><br>