भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
::गांधी हो कि ग़ालिब हो, इन्साफ़ की नज़रों में,
::हम दोनों के क़ातिल हैं, दोनों के पुजारी हैं।
तुर्बत= क़ब्र; मसकन= निवासस्थान; वादा-ए-फ़रदा= कल के लिए किया गया वायदा
Anonymous user