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धूल से नायकअपनी भरा एक मौसमपीठ दिखाबारिश के बीच से गुज़र,दूर जा चूका हैंसाफ़-सुथरा होने के बादनायिकाएंफिर से धूल में लोट-पोट हो जाता हैसिर झुकाए सुबक रही हैं
एक नायिका
एकतरफा प्रेम में डूब कर
नायक द्वारा फेंके हुए सिगरेट के टुकडे उठा कर
अकेले में पीने लगती है
और फिर उसी सरूर में अपने सबसे अज़ीज़ सपनों को बारी-बारी से कन्धा दे
दिया करती है
प्रेम की सीली यादों कोएक बड़ी खिड़की मेंनाजुक ओस इंतज़ार के सी सावधानी से रूई पर उठा लेने के बादआंसुओं की गंगा- जमुना में बहा देना प्रेम का सिलसिलेवार विधान खड़े सीखचों को थाम कर गुमसुम बैठी है नायिका
हमारी आत्मानायिकाउन्हीं छुटी हुई चीज़ों से दोस्ती करने को आगे करती सोलह सिंगार में व्यस्त हैजो हमारे हाथ लगने से रह गयी हैनायकऔर पडोसी देश की सेना को धूल चटा कर अभी-अभी लौटा एक दिनआत्घाती बनहमें ही चोट पहुंचाने लगती है
जब यह बात कोई इतिहास की झांकी से हमारे नायक -नायिकाओं का अक्स कुछ ऐसा ही दिखता है एक लम्बे अरसे के बाद ही नायिकाएंजान सकीकि आंसू,जलता हुआ गर्म पारा हैइंतज़ार,एक मीठा धोखायाद,एक आत्मघाती जहरसिंगार,खुद को भूलने का सलीकेदार शऊर यह बात जान लेता सुनहरे फ्रेम में जड़ी हुई सभी नायिकाएं बाहर जा चुकी हैंतस्वीर में रौंदी हुयी घाससाफ़ दिखाई दे रही है तब तक वह अपनी सारी जमा पूँजीनायक,तफ़रीह से वापिस आ गए हैंबेचैन हैंअपनी आत्मा नायिकाओं को तयशुदा जगह परन पाकर अब नायक अकेले और प्रतीक्षारत खड़े हैंआओमेरे समय के हवाले कर चुका होता है चित्रकारोउन्हें इसी अवस्था में चित्रित करो हमारे पास कुछ ऐसी तस्वीरें भी तो होजिसके दोनों पलड़े में एक सा भार दिखाई दे
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