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तस्वीर बदल चुकी है / विपिन चौधरी

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नायक
अपनी पीठ दिखा
दूर जा चूका हैं
नायिकाएं
सिर झुकाए सुबक रही हैं


एक बड़ी खिड़की में
इंतज़ार के खड़े सीखचों को थाम कर गुमसुम बैठी है नायिका

नायिका
सोलह सिंगार में व्यस्त है
नायक
पडोसी देश की सेना को धूल चटा कर अभी-अभी लौटा है

इतिहास की झांकी से हमारे नायक -नायिकाओं का अक्स कुछ ऐसा ही दिखता है


एक लम्बे अरसे के बाद ही नायिकाएं
जान सकी
कि आंसू,
जलता हुआ गर्म पारा है
इंतज़ार,
एक मीठा धोखा
याद,
एक आत्मघाती जहर
सिंगार,
खुद को भूलने का सलीकेदार शऊर

यह जान
सुनहरे फ्रेम में जड़ी हुई सभी नायिकाएं बाहर जा चुकी हैं
तस्वीर में रौंदी हुयी घास
साफ़ दिखाई दे रही है

नायक,
तफ़रीह से वापिस आ गए हैं
बेचैन हैं
अपनी नायिकाओं को तयशुदा जगह पर
न पाकर

अब नायक अकेले और प्रतीक्षारत खड़े हैं
आओ
मेरे समय के चित्रकारो
उन्हें इसी अवस्था में चित्रित करो

हमारे पास कुछ ऐसी तस्वीरें भी तो हो
जिसके दोनों पलड़े में एक सा भार दिखाई दे