भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिचरण अहरवाल ‘निर्दोष’ |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिचरण अहरवाल ‘निर्दोष’
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>मन मार’र रहग्यो
उनाळु फसल आबा क पाछ बी
करतो बी कांई
न्हं चुक पाया ब्याज-बट्टा बी कोई का
लेणी होर पड़्या छा, हाथ उधार
बेटी को ब्याव तो टाळणी पड़्यो छो
परण’र बी
अर कांई हो पावगो अऽऽस बी
छोरा की तो म’ल ही न्हं री सगाई
उग्या-आश्यां बऽऽस खटक छै
एक ही सांसो,
कस्यां चालगी घर-गृहस्थी
मूंडो फाड़ती महंगाई
बैठी छै त्यार नंगळबा कारण
सरकार को कांई
फेर बधा देगी
खाद-बीज, तेल-फूल
अर मरच-मसालां को भाव
लसण तो परणी ही पड़ी छी फेंकणी
कांई करंगा अऽऽस बी लगा’र
पण गार भेळ, गार होयां बना बी
न्हं भरै करसाण को पेट।</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=हरिचरण अहरवाल ‘निर्दोष’
|संग्रह=मंडाण / नीरज दइया
}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>मन मार’र रहग्यो
उनाळु फसल आबा क पाछ बी
करतो बी कांई
न्हं चुक पाया ब्याज-बट्टा बी कोई का
लेणी होर पड़्या छा, हाथ उधार
बेटी को ब्याव तो टाळणी पड़्यो छो
परण’र बी
अर कांई हो पावगो अऽऽस बी
छोरा की तो म’ल ही न्हं री सगाई
उग्या-आश्यां बऽऽस खटक छै
एक ही सांसो,
कस्यां चालगी घर-गृहस्थी
मूंडो फाड़ती महंगाई
बैठी छै त्यार नंगळबा कारण
सरकार को कांई
फेर बधा देगी
खाद-बीज, तेल-फूल
अर मरच-मसालां को भाव
लसण तो परणी ही पड़ी छी फेंकणी
कांई करंगा अऽऽस बी लगा’र
पण गार भेळ, गार होयां बना बी
न्हं भरै करसाण को पेट।</poem>