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Kavita Kosh से
घिरने लगे नींद के बादल
दुखने लगा आँख का काजल
अब तो रात हो गई है ।।
दीख रही अब ऐसी काली
खिड़की नहीं रही जैसे --
अब तो रात हो गई है ।।
फिर से होने लगे पनीले
घर-बाहर जैसे हल्की --
अब तो रात हो गई है ।।
तम से लड़ते हिम्मत वाले
वीरों की उजली सेना --
अब तो रात हो गई है ।।
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