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यूँ न रह रह के हमें तरसाइए / साग़र निज़ामी
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09:12, 16 जनवरी 2015
आइए, आ जाइए, आ जाइए ।
फिर वही दानिश्ता
<ref>जान-बूझकर</ref>
ठोकर खाइए,
फिर मिरे आग़ोश में गिर जाइए ।
जी में आता है यहीं मर जाइए ।
</poem>
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अनिल जनविजय
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