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{{KKRachna
|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>आज मुकाबिल भाई है.
तब गीता याद आई है.
अपनों से लड़ना होगा,
अपने हक़ की लड़ाई है.
सच को सच वो माना नहीं,
मैंने क़सम भी खाई है.
उसके संग सब लोग मगर,
मेरे साथ खुदाई है.
जंग ये मैं ही जीतूंगा,
सच्चाई सच्चाई है.
</poem>
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<poem>आज मुकाबिल भाई है.
तब गीता याद आई है.
अपनों से लड़ना होगा,
अपने हक़ की लड़ाई है.
सच को सच वो माना नहीं,
मैंने क़सम भी खाई है.
उसके संग सब लोग मगर,
मेरे साथ खुदाई है.
जंग ये मैं ही जीतूंगा,
सच्चाई सच्चाई है.
</poem>