भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
तरबन्ना सें होय केॅ आबै छै साँपिन डगर,
की कभी ओकरा पर तोहरोॅ ठहरलोॅ छौं नजर ?
साकार कविता छेकै अद्भुत छै ओकरोॅ छन्द,
एक-एक मोड़ छेकै एकरोॅ स्टेंजा आकि अलग-अलग बंद।
एक-एक भ$ाड़-विरिछ कोमा-सेमिकाॅलन छेकै,
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,574
edits