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ढूँढ रहा खोया अनुराग घर से बाहर तक / डी. एम. मिश्र
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09:48, 24 अगस्त 2017
अपनी डफली - अपना राग घर से बाहर तक।
बेच दिया मुस्कान
क्षणि
क्षणिक
खुशियों की ख़ातिर
लगी है बाजा़रों में आग घर से बाहर तक।
सारी रात सितारों ने रखवाली की है
अब तेरी बारी है
जागघर
जाग घर
से बाहर तक।
</poem>
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