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1यह जीवनयों स्वर्णिम हो गयादर्द खो गयानील नभ में कहींजो स्पर्श तेरा मिला।2प्यासा गगनथा मेरा यह मनभटका सदासरस धरा तुमसींचे सूखे अधर3पलकें खुलींझरा प्यार निर्झरपिया जीभरओक बने अधरसरस मन हुआ।4थाती तुम्हारीप्राण मेरे विकलअर्पित करूँभर भर अँजुरीमेरे प्रेम देवता।5सृष्टि प्रेम कीसींचती प्रतिपलआए प्रलयबूँद थी मैं तुम्हारीतुम्हीं में हूँ विलय।6प्रभु के आगेशीश जब झुकायातुमको पाया।खड़े मेरे सामनेअंक में आ समाए।
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