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04:10, 3 सितम्बर 2018 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=बशीर बद्र
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|संग्रह=
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<poem>
मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है
ये दुनिया ख़ूबसूरत हो गई हैं
ख़ुदा से रोज तुम को माँगता हूँ
मेरी चाहत इबादत हो गई है
वो चेहरा चाँद है, आँखें सितारे
ज़मी फूलों की जन्नत हो गई है
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है
चले भी आओ मुद्दत हो गई है
</poem>