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06:42, 19 अक्टूबर 2018
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|रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत
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<poem>
पुराने जूते सुखद और उदार हैं
किसी पुराने आत्मीय की तरह
अपना विन्यास और अकड़ भूल कर
वे पाँवों के अनुरूप ढल जाते हैं
इतने अपने इतने अनुकूल
गंदले होकर ही कमाई जा सकती है
जीवन की मशक्कत भरी तमीज़
यह केवल जूते जानते हैं
नये जूते बेशक चमचमाते शानदार हैं
लेकिन जीवन की आवश्यक विनम्रता
उन्हे पुराने जूतों से सीखनी पड़ती है
कहते हैं 'गेटे' को पुराने जूते छोड़ते हुए
बहुत तकलीफ़ होती थी
प्रिय पुरखे को दफ़नाने की तरह
एक कवि को पुराने जूतों की तरह
आत्मीय और उदार होना चाहिए
केवल तभी उसकी कविता बचा सकती है
जीवन को कंटीले धूल-धक्कड़ से
झुलसती धूप से ठिठुरते शीत से।
</poem>