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पुराने जूते / सवाईसिंह शेखावत
Kavita Kosh से
पुराने जूते सुखद और उदार हैं
किसी पुराने आत्मीय की तरह
अपना विन्यास और अकड़ भूल कर
वे पाँवों के अनुरूप ढल जाते हैं
इतने अपने इतने अनुकूल
गंदले होकर ही कमाई जा सकती है
जीवन की मशक्कत भरी तमीज़
यह केवल जूते जानते हैं
नये जूते बेशक चमचमाते शानदार हैं
लेकिन जीवन की आवश्यक विनम्रता
उन्हे पुराने जूतों से सीखनी पड़ती है
कहते हैं 'गेटे' को पुराने जूते छोड़ते हुए
बहुत तकलीफ़ होती थी
प्रिय पुरखे को दफ़नाने की तरह
एक कवि को पुराने जूतों की तरह
आत्मीय और उदार होना चाहिए
केवल तभी उसकी कविता बचा सकती है
जीवन को कंटीले धूल-धक्कड़ से
झुलसती धूप से ठिठुरते शीत से।