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<poem>

पीली धूप थमी है रेत में
हाथ में हँसिया
चेहरे पर सन्तोष
और उल्लास में थमी है देह

बच्चा देर से पुकारता
प्रतीक्षा में थमा है
अभी जब वह आ लिपटा माँ से खेत में

हवाएँ पेड़ों पर थमी हैं कुछ देर
पंछी घोंसलों में
इस तरह पूरे सपने में सुख थमा है।

अपनी फसलों को देखती
खेत की वह पुत्रवती युवती
अनुभव करती है
उमड़ती हुई दूध की धारें
अपने सुडौल वक्षों में
जब पुत्र के हाथ
और नयी फसल का स्पर्श छूते हैं उसे।


</poem>
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