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कटाई / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
पीली धूप थमी है रेत में
हाथ में हँसिया
चेहरे पर सन्तोष
और उल्लास में थमी है देह
बच्चा देर से पुकारता
प्रतीक्षा में थमा है
अभी जब वह आ लिपटा माँ से खेत में
हवाएँ पेड़ों पर थमी हैं कुछ देर
पंछी घोंसलों में
इस तरह पूरे सपने में सुख थमा है।
अपनी फसलों को देखती
खेत की वह पुत्रवती युवती
अनुभव करती है
उमड़ती हुई दूध की धारें
अपने सुडौल वक्षों में
जब पुत्र के हाथ
और नयी फसल का स्पर्श छूते हैं उसे।