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10:57, 22 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
|अनुवादक=
|संग्रह=रेत पर उंगली चली है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
दिल है कुछ बे-क़रार आ जाओ
तोड़ो मत ऐतबार आ जाओ।
खत्म करने को प्यास आंखों की
सामने एक बार आ जाओ।
मेरी चाहत का कुछ भरम रख लो
तोड़ डालो हिसार आ जाओ।
हिज्र ने जो हमें दिये सदमे
उनका करने शुमार आ जाओ।
ज़िन्दगी खत्म होने वाली है
तीर है दिल के पर आ जाओ।
प्यार मुमकिन नहीं है शर्तों पर
मत करो कारोबार आ जाओ।
कर ली मंज़ूर हर सज़ा 'विश्वास'
अब तो लेकर बहार आ जाओ।
</poem>