भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल है कुछ बे-क़रार आ जाओ / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
Kavita Kosh से
दिल है कुछ बे-क़रार आ जाओ
तोड़ो मत ऐतबार आ जाओ।
खत्म करने को प्यास आंखों की
सामने एक बार आ जाओ।
मेरी चाहत का कुछ भरम रख लो
तोड़ डालो हिसार आ जाओ।
हिज्र ने जो हमें दिये सदमे
उनका करने शुमार आ जाओ।
ज़िन्दगी खत्म होने वाली है
तीर है दिल के पर आ जाओ।
प्यार मुमकिन नहीं है शर्तों पर
मत करो कारोबार आ जाओ।
कर ली मंज़ूर हर सज़ा 'विश्वास'
अब तो लेकर बहार आ जाओ।