785 bytes added,
11:17, 23 मई 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=
|अनुवादक=कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हम जे कह रहल बानी
ओकरा जान-समझ ल।
देव आउर अदमी
जवन गुरू समान बरहम के
मान देवेलन
उ गुरू के
ओह लायक गेयानी
हमहीं बनाईंला। ॥5॥
अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥
</poem>