भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वागाम्‍भृणी सूक्‍त, ऋग्वेद - 10 / 125 / 5 / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम जे कह रहल बानी
ओकरा जान-समझ ल।
देव आउर अदमी
जवन गुरू समान बरहम के
मान देवेलन
उ गुरू के
ओह लायक गेयानी
​​हमहीं बनाईंला। ॥​5॥

अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवेभिरुत मानुषेभिः ।
यं कामये तंतमुग्रं कृणोमि तं ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम् ॥5॥