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02:01, 14 जून 2019 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>हमारे घर में आना भूल जाएं
ग़म अपना आशिना भूल जाएं
सफ़र इस बार मक़तल की तरफ़ है
मुझे कर के रवाना भूल जाएं
चलो फिर दिल के रस्ते खोलते हैं
चलो जो है पुराना भूल जाएं
कोई मतलब नहीं फिर दोस्ती का
अगर वो दिल दुखाना भूल जाएं
कई लोगों को हमने खो दिया है
वफ़ाएं आज़माना भूल जाएं
</poem>