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<poem>
लिपटी हूँ यादों से तुम्हारी
मै तनहा नही हूँ

मेरा हंसना, मुस्कुराना
रह-रह कर ठहाके लगाना
भुला देगा एक दिन
तेरा आना-चले जाना
छिपा ही लेगा शायद
शाम की गहराई में
रूठना-मनाना
लेकिन
साथ रहती हूँ परछाईं बन
सुनों
मै कहाँ नही हूँ

अच्छा छोड़ो
इन बेहिसाब यादों का हिसाब
रूक-रूक कर चलती
साँसों का हिसाब
और हिसाब उन
इंतजार के पलों का भी
जब-

तुम्हें तलाशती नज़रें
बेहाल होती धड़कने
पूछती हैं
आवाज़ देती हैं
तुम आओ तो ठहरूं
थोड़ा रुक जाऊँ-

लेकिन मै
कभी थकती ही नही हूँ।
</poem>
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