भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मै तनहा नहीं हूँ / सुनीता शानू

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिपटी हूँ यादों से तुम्हारी
मै तनहा नही हूँ

मेरा हंसना, मुस्कुराना
रह-रह कर ठहाके लगाना
भुला देगा एक दिन
तेरा आना-चले जाना
छिपा ही लेगा शायद
शाम की गहराई में
रूठना-मनाना
लेकिन
साथ रहती हूँ परछाईं बन
सुनों
मै कहाँ नही हूँ

अच्छा छोड़ो
इन बेहिसाब यादों का हिसाब
रूक-रूक कर चलती
साँसों का हिसाब
और हिसाब उन
इंतजार के पलों का भी
जब-

तुम्हें तलाशती नज़रें
बेहाल होती धड़कने
पूछती हैं
आवाज़ देती हैं
तुम आओ तो ठहरूं
थोड़ा रुक जाऊँ-
 
लेकिन मै
कभी थकती ही नही हूँ।