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इक घर बना लेते जहाँ / विपिन सुनेजा 'शायक़'
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20:40, 10 जुलाई 2019
हम गिड़गिड़ाते ही रहे उस पर असर कोई न था
ख़ुशफ़हमियों में
हमनें
हमने
कितना वक़्त ज़ाया कर दिया
ज़िन्दा रहे किसके लिए अपना अगर कोई न था
हमको हमारे बाद कोई याद करता
किस लिए
किसलिए
कुछ शे'र कहने के सिवा हममें हुनर कोई न था
</poem>
अनिल जनविजय
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