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Kavita Kosh से
किरणों का प्रकाश अन्धेरे में खो रहा है
तेरे स्वरों की जैसे आवाज़ गूँज रही है
आवाज़ के नशे में सूर्यास्त मेरा ध्यान खो रहा है
मुझे पता था कि मैं सब कुछ गवाँ चुकी हूँ