भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सफ़ेद रात को / आन्ना अख़्मातवा / अनिल जनविजय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ओह ! मैंने दरवाज़ा बन्द नहीं किया
और मोमबत्ती भी नहीं जलाई
कितनी थकी हुई हूँ मैं, यह तुम क्या जानो
इसलिए लेटने में भी मैंने समझी नहीं भलाई

देखा नहीं ये मैंने, सूर्यास्त हो रहा है
किरणों का प्रकाश अन्धेरे में खो रहा है
तेरे स्वरों की जैसे आवाज़ गूँज रही है
आवाज़ के नशे में मेरा ध्यान खो रहा है

मुझे पता था कि मैं सब कुछ गवाँ चुकी हूँ
जीवन बन चुका है जहन्नुम कहर भरा
तुम लौटकर आओगे मेरे पास ज़रूर
यह यक़ीन था मुझको पूरा-पूरा

मूल रूसी भाषा से अनूदित : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
          Анна Ахматова
            Белой ночью

Ах, дверь не запирала я,
Не зажигала свеч,
Не знаешь, как, усталая,
Я не решалась лечь.

Смотреть, как гаснут полосы
В закатном мраке хвой,
Пьянея звуком голоса,
Похожего на твой.

И знать, что все потеряно,
Что жизнь - проклятый ад!
О, я была уверена,
Что ты придёшь назад.