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<poem>
यही बस एक गहना चाहिए था
तुम्हारा प्यार पूरा चाहिए था

छिड़कना पड़ रहा है इत्र उस पर
वो गुल जिसको महकना चाहिए था

तुम्हें ही ध्यान में रखता है कोई
तुम्हें ये ध्यान रखना चाहिए था

मेरी ख़ामोशियाँ समझीं गईं कब
मुझे आँखें भिगोना चाहिए था

ये मुझसे ज़िन्दगी कहती है अक्सर
मुझे अच्छे से जीना चाहिए था

भले इक काठ का बिस्तर ही होता
मगर बाँहों का तकिया चाहिए था

परखनी है अगर हिम्मत दिए की
उसे आँधी में रखना चाहिए था

तुम्हें ख़ुद दुख मेरा महसूस होता
मुझे चुपचाप रहना चाहिए था
</poem>
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