844 bytes added,
12:04, 21 अगस्त 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सोनरूपा विशाल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपनी नज़रों में हारना कब तक
उसको अक्सर पुकारना कब तक
अब तो खुल जानी चाहिए आँखें
रात को दिन पुकारना कब तक
फोन कर ही लिया तुम्हें आख़िर
शाम बेकल गुज़ारना कब तक
ज़िन्दगी तो सँवारिये पहले
सिर्फ़ सूरत सँवारना कब तक
चंद हाथों के चंद नोटों पर
अपनी मेहनत को वारना कब तक
</poem>