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05:38, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
जिस सम्त भी देखो है बमों की बरसात
इक आग का गोला बनी जाती है हयात
ऐसे में हो क्या अम्नो-अमां की उम्मीद
बदलें ही न जब कि ना-मसाअद हालात।
</poem>