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जिस सम्त भी देखो है बमों की बरसात / रमेश तन्हा

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जिस सम्त भी देखो है बमों की बरसात
इक आग का गोला बनी जाती है हयात
ऐसे में हो क्या अम्नो-अमां की उम्मीद
बदलें ही न जब कि ना-मसाअद हालात।