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05:46, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
सपनो में कई मारिके सर करते हैं
हम दिन की हक़ीक़त से मगर डरते हैं
गर सामना हो जाये हक़ीक़त का कहीं
क्या क्या न गुमां पालते हैं, मरते हैं।
</poem>