571 bytes added,
05:58, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
{{KKCatRubaayi}}
<poem>
उन से नहीं अब कुछ इमकाने-गुफ्तार
आपस में नहीं हैं सुल्ह के भी आसार
यूँ तो नहीं हल किस मुश्किल का लेकिन
समझाना है मर्दे-नादां को दुश्वार।
</poem>