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05:59, 7 सितम्बर 2020 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रमेश तन्हा
|अनुवादक=
|संग्रह=तीसरा दरिया / रमेश तन्हा
}}
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<poem>
अहसास के शोलों को हवा देता है
सोये हुए इमकान जगा देता है
क्यों अपने तखैयुल के न कुरबां जाऊं
जो राज़ की हर बात बता देता है।
</poem>