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18:42, 17 जनवरी 2021 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमुद बंसल
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<poem>
1
जो बादलों-से बरस गए,
वे बन गये समन्दर।
छिपे रहे जो मेरे नैनन,
मैं डूबी उनके अन्दर।।
2
भीष्म, अर्जुन समा गए,
इतिहास में।
शकुनि-सोच है बहुत लोगों
के पास में ।।
3
जीवन में मिलती रहती,
चुनौतियों की भेंट रोज़ ।
उड़ाकर उनकी पतंगें,
हम भी करते मौज।।
4
थी उसकी रग-रग में,
धूर्त्तता, धोखा, मक्कारी।
मिलते ही हल्दी-गाँठ,
बंदर बना पंसारी।।
-0-
</poem>