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08:50, 28 मई 2022 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुषमा गुप्ता
|अनुवादक=रश्मि विभा त्रिपाठी
|संग्रह=ऊषा आएगी / रश्मि विभा त्रिपाठी
}}
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<poem>
1
मन व्यथित
‘मुस्कान भी है झूठी’-
आँसू कहते।
हिय छउँछै
मुसकानऔ मृषा
आँसु भाखइँ।
2
ये तारे ऐसे
चाँदनी की चुनरी
टँगी हो जैसे।
ई तारा अस
अँजोरि कै चुनरी
रेइसि जस।
3
जिंदगी सारी
खुशनुमा बहुत
बाँहें फैलाओ ।
जिनगी सबै
परसन्न खुबइ
कउलियाबौ।
4
कम जीवन
साथ और भी कम
जियो जीभर।
जिनगी थ्वार
संघ औरउ थ्वार
अघाक जियौ।
5
हाथ में हाथ
बस रखना थामे
फिर क्या ग़म।
हाँथे मा हाँथु
बसि गहे रहिउ
फिरि का दुखु।
6
कभी तो लौट
देख आकर ज़रा
वहीं हैं खड़े
कबौ त लौटि
द्याखउ आनि तनी
हुँअइ ठाङ।
-0-
</poem>