भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
उस सुदूर देश के बारे में गाती है  ये सोनचिरैया, 
जहाँ हिम-तूफ़ान के पार मुश्किल से झलक रहा है
एक अकेली क़ब्र का ढूह औ’ उसकी मिट्टी की ढैया, 
जिसके ऊपर उजला -बिल्लौरी हिम चमक रहा है
वहाँ कभी सुनाई न देती भुर्जवृक्ष की फुसफुसाहट
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits