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अंतर / त्रिलोचन

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|संग्रह=ताप के ताये हुए दिन / त्रिलोचन
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तुलसी और त्रिलोचन में अन्तर जो झलके
 
वे कालान्तर के कारण हैं । देश वही है,
 
लेकिन तुलसी ने जब-जब जो बात कही है,
 
उसे समझना होगा सन्दर्भों में कल के ।
 
वह कल, कब का बीत चुका है--आँखें मल के
 
ज़रा देखिए, इस घेरे से कहीं निकल के,
 
पहली स्वरधारा साँसों में कहाँ रही है;
 
धीरे-धीरे इधर से किधर आज बही है ।
 
क्या इस घटना पर आँसू ही आँसू ही ढलके ।
 
और त्रिलोचन के सन्दर्भों का पहनावा
 
युग ही समझे, तुलसी को भी नहीं सजेगा,
 
सुखद हास्यरस हो जाएगा । जीवन अब का
 
फुटकर मेल दिखाकर भी कुछ और बनावा
 
रखता है । अब बाज पुराना नहीं बजेगा
 
उसके मन का । मान चाहिए, सबको सबका ।
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