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|रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल
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<poem>
ईश्वर का पैरहन उधड़ रहा था...
दुःख की सुई से
चींदी-चींदी टांका
सुख टांके के रेशे जितना ही रहा
उघड़े हुए दुःख को ढांकता ईश्वर
भूमिगत हो गया है
तुम्हें ईश्वर का साक्षात्कार चाहिए
तो दुःख को गले लगा लो!</poem>
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