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है अंग-अंग तेरा सौ गीत, सौ ग़ज़ल / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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07:24, 26 फ़रवरी 2024
पढ़ता हूँ कर अँधेरा सौ गीत, सौ ग़ज़ल।
देखा है
तुझको
तुझ को
जबसे मेरे मन के आसपास,
डाले हुए हैं डेरा सौ गीत, सौ ग़ज़ल।
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