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{{KKRachna
|रचनाकार=महेश कुमार केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
लड़की ने जब किलकारी
भरी बागों में फूल
खिलने शुरू हुए
तभी शायद किरणों
ने पहाड़ों के बीच से
पहली बार झाँका !
चिड़ियों की चहचहाहट
पहली बार इस धरा पर सुनी ग ई !
लड़कियाें ने जब मुस्कुराया
और जब उनके चमकीले
दाँत मोतियों की तरह
चमके
तो पहली बार इँद्र धनुष खिले !
लड़कियाँ जब खिलखिलाईं
तो सातों सुर बने
संगीत की लय से
नहा उठी हमारी दुनिया
लड़कियाँ जब हँसी
तो नदियों , ने गति पाई ।
सागर ने हिलोंरें भरना सीखा
पहाड़ों ने ली अंगड़ाई ।!
और , जब लड़कियों ने
पहली बार गर्भ धारण किया
और माँ बनीं ।
तब पृथ्वी को लोगों ने धरती माँ कहा !
</poem>
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|रचनाकार=महेश कुमार केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
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लड़की ने जब किलकारी
भरी बागों में फूल
खिलने शुरू हुए
तभी शायद किरणों
ने पहाड़ों के बीच से
पहली बार झाँका !
चिड़ियों की चहचहाहट
पहली बार इस धरा पर सुनी ग ई !
लड़कियाें ने जब मुस्कुराया
और जब उनके चमकीले
दाँत मोतियों की तरह
चमके
तो पहली बार इँद्र धनुष खिले !
लड़कियाँ जब खिलखिलाईं
तो सातों सुर बने
संगीत की लय से
नहा उठी हमारी दुनिया
लड़कियाँ जब हँसी
तो नदियों , ने गति पाई ।
सागर ने हिलोंरें भरना सीखा
पहाड़ों ने ली अंगड़ाई ।!
और , जब लड़कियों ने
पहली बार गर्भ धारण किया
और माँ बनीं ।
तब पृथ्वी को लोगों ने धरती माँ कहा !
</poem>